कारगिल विजय दिवस – अदम्य साहस की अमर गाथा

हर वर्ष 26 जुलाई को हम कारगिल विजय दिवस के रूप में उन जांबाज़ सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने 1999 में हुए कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देकर भारत की भूमि और सम्मान की रक्षा की। यह दिवस केवल विजय का उत्सव नहीं, बल्कि भारत के सच्चे सपूतों की वीरगाथा को याद करने और उससे प्रेरणा लेने का दिन है।
जब सर्दी में जमी थी ज़मीन, लेकिन जवानों का हौसला गर्म था

कारगिल युद्ध की शुरुआत 1998-99 की कड़ाके की सर्दी में हुई थी, जब पाकिस्तान की सेना और घुसपैठियों ने LOC पार कर भारत की रणनीतिक चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इन ऊंचाइयों से श्रीनगर-लेह हाईवे पर निगरानी रखना आसान था, जिससे भारत की सप्लाई लाइन बाधित की जा सकती थी।
जब स्थानीय चरवाहों ने हलचल देखी और सेना ने गश्त लगाकर स्थिति की पुष्टि की, तब भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय का आदेश दिया। करीब दो लाख सैनिक युद्ध में उतारे गए। साथ ही वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर और नौसेना ने ऑपरेशन तलवार की शुरुआत की।
युद्ध नहीं, एक परीक्षा थी – हिम्मत, हिमालय और हदों की
16,000 फीट की ऊंचाई, शून्य से नीचे तापमान और दुश्मन की गोलीबारी – इन कठिन परिस्थितियों में भारतीय जवानों ने ना केवल जंग लड़ी, बल्कि हर चोटी को फिर से भारत के तिरंगे से लहराया।
टाइगर हिल, पॉइंट 4875, क्लबूर रिज, लोन हिल, और जुलु टॉप जैसी चोटियों पर लड़ाइयाँ सिर्फ रणभूमि में नहीं, हर भारतीय के दिल में भी लड़ी गईं।
उन वीरों को सलाम जिन्होंने जान देकर जीत दिलाई





- कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने जोशीले नारे “ये दिल मांगे मोर” से पूरी बटालियन का मनोबल बढ़ाया। उन्होंने दुश्मन की भारी गोलाबारी के बीच पॉइंट 4875 को फतह किया और वीरगति को प्राप्त हुए।
- लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, घायल होने के बावजूद क्लबूर रिज पर डटे रहे और अपने साथियों को विजय की ओर ले गए।
- ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, बुरी तरह घायल होने पर भी टाइगर हिल की चढ़ाई पूरी की और विजय में अहम भूमिका निभाई।
- कैप्टन नेइकेझाखुओ केंगुरूस, नगालैंड के इस शूरवीर ने नंगे पांव लोन हिल पर हमला किया और वीरगति को प्राप्त हुए।
- नायक कौशल यादव, ने जुलु टॉप पर कब्जा दुश्मनों से छुड़ाया लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने प्राण गंवा दिए।
🎖 विजय के साथ शौर्य का स्मारक
11 जुलाई को पाकिस्तान ने पीछे हटने की शुरुआत की, और 26 जुलाई 1999 को भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय की आधिकारिक समाप्ति की घोषणा की। इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
युद्ध में 527 से अधिक जवान शहीद हुए और 1,300 से अधिक घायल हुए – उनका बलिदान आज भी भारत की सुरक्षा का आधार है।
स्मृति से शक्ति तक

दिल्ली में अमर जवान ज्योति और ड्रास के युद्ध स्मारक पर हर साल प्रधानमंत्री और सेना के अधिकारी श्रद्धांजलि देते हैं। स्कूलों, कॉलेजों और समाजों में झंडारोहण, देशभक्ति गीत, नाटक और कैंडल मार्च जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए देशभक्ति की लौ जलाई जाती है।
युद्ध के बाद सुधारों की दिशा
कारगिल युद्ध ने यह सिखाया कि केवल साहस ही नहीं, बल्कि बेहतर रणनीति, समन्वय और खुफिया तंत्र की भी आवश्यकता है। इसके बाद हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल (HAWS) को सशक्त किया गया और पर्वतीय युद्ध कौशल को और उन्नत किया गया।
कारगिल – केवल एक युद्ध नहीं, एक चेतावनी भी
कारगिल विजय दिवस हर भारतीय को याद दिलाता है कि हमारी आज़ादी मुफ्त में नहीं मिली है। इसे हमारे वीर जवानों ने अपने खून से सींचा है। यह दिवस हमसे केवल श्रद्धांजलि नहीं, दायित्व की अपेक्षा करता है — कि हम देश की अखंडता, एकता और गरिमा को बनाए रखें।
नमन उन सभी वीरों को,
जो आज भी पहाड़ों की चोटी पर नहीं, हमारे दिलों की ऊंचाई पर जीवित हैं।
जय हिंद। वंदे मातरम्।
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